मेरी श्रीमती || Funny Poetry in Hindi

ए मेरी श्रीमती
तुझे मालूम नही
मैं हूँ कितना गरीब
और तू कितनी खर्चीली मेरी जान
करदे मुझपे अहसान अहसान अहसान...

तेरा ब्यूटी पार्लर में जाना
और इतना पाउडर लगाना
है तू फिर वैसी की वैसी
फिर काहे की इतना खर्च कराना
तेरा खर्चा जा रहा बजट से बाहर मेरी जान
तू करदे मुझपे अहसान अहसान अहसान...

अरे रे रे सैया मेरे
काहे को करता नखरे
जब तेरे बसकी नही थे करने मेरे खर्चे
तो काहे को तूने ब्याह रचाया
काहे को किया ये स्वांग स्वांग स्वांग...

1000 के लाली पौडर में इतनी हद्द करते हो
फिर क्यों 500 का खुद ही चट करते हो
मुझसे दूरी बनालो खरचा खुद खुद कम हो जायेगा
मुझे मालूम था मेरी किस्मत में कंजूस आएगा
आज से मैं तेरे लिए अनजान
जा कर दिया तूझपे अहसान अहसान अहसान...

अरे मेरी श्रीमती
क्यो इतने गुस्से से भरी
मुझसे हो गयी गलती
मुझे तू माफ करदे
चाहे कर जितने खर्चे
पर जाने का तू ले नाम नाम नाम
करदे ये आखिरी अहसान अहसान अहसान...


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तुझे पाना नही मुकाम मेरी जिन्दगी का || Love Poetry In Hindi

Love Poetry In Hindi

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तुझे पाना नही मुकाम मेरी जिन्दगी का || Love Poetry In Hindi 

तुझे पाना नही मुकाम मेरी जिन्दगी का,
तेरी मोजुदगी का अहसास ही काफी है,
तु ना मिले तो ना सही,
मेरे जीने को तेरा दिदार ही काफी है ।
हर किसी को उसका प्यार मिले ये जरुरी तो नही,
ये तो दिल की बात है,
कोई मज़बूरी तो नही ।
प्यार ना करो ना करना,
पर इतना जरुर करना,
की मुझसे नफरत भी ना करना,
तेरे प्यार के बगैर फिर भी रह लेंगे,
तुझसे दूर रहने का गम फिर भी सह लेंगे,
ना सह पाएंगे तो नफरत ये तुम्हारी,
आखिरी पल होगा वो जिन्दगी का हमारी।

लेखक:- लव पांचाल

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लिखता हूं धर्म है मेरा || Deep Thought Poetry In Hindi


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लिखता हूं धर्म है मेरा || Deep Thought Poetry In Hindi


लिखता हूं धर्म है मेरा
लिखता हूँ कर्म है मेरा

जो मैंने ना लिखा तो
फिर कौन लिखेगा

जो मैंने ना कहा
तो कौन कहेगा

लिखना जिद्द है मेरी
है लिखना मजबूरी

क्योंकी जब ऐसे हादसे होते है
तो लिखना जरुरी है

जब कोई दामिनी चीखती है
तो लिखना जरूरी है

जब किसी प्रद्युमन की जान जाती है
तो लिखना जरूरी है

जब कोहरा हादसा बनता है
तो लिखना जरूरी है

जब मौसम बिन मौसम बदलता है
तो लिखना जरूरी है

कभी कभी जब दिल भर आये
तो लिखना जरूरी है

जब आंखे शर्म से झुक जाए
तो लिखना जरूरी है
लेखक:-लव पांचाल

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जमीर सोया क्यों है || Poetry On Rape || Deep Thought Poetry In Hindi

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Poetry On Rape || Deep Thought Poetry In Hindi

जमीर सोया क्यों है,
खून खोलता क्यों नही,
क्यों है इतनी खामोशी,
ये शहर कुछ बोलता क्यों नही।

चीखे सुनकर भी क्यों दर्दनाक इतनी,
क्यों कर्णो में तुमने अपने उंगली रखली,
क्यों ख्याल ये मन में भी  आया,
तुमको भी छू सकता है दर्द का ये साया।

क्यों वो हाथ कभी काँपते नही है,
दर्द की परिभाषा को क्यों भांपते नही है,
क्यों होती है इंसानियत शर्मसार हर बार,
क्यों हम नींद से जागते नही है।

सहानुभति भी वो नाटक भर दिखाता है,
आंखों में अश्क़ प्याज से लाता है,
क्यो होता है फिर बलात्कार बार -2,
क्यों कोई उसके तन को ढांकता नही है।

ये कोई एक रोज की बात नही,
दर्द से  गुजरे फिर ऐसी कोई रात नही,
ऐसी अमावस की रात कोई लाता क्यों है,
करता कोई जीवन मे रोशनी क्यों नही।
लेखक:-लव पांचाल

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