Deep Thought Poetry In Hindi |
Poetry On Rape || Deep Thought Poetry In Hindi
जमीर सोया क्यों है,
खून खोलता क्यों नही,
क्यों है इतनी खामोशी,
ये शहर कुछ बोलता क्यों नही।
चीखे सुनकर भी क्यों दर्दनाक इतनी,
क्यों कर्णो में तुमने अपने उंगली रखली,
क्यों ख्याल ये मन में भी न आया,
तुमको भी छू सकता है दर्द का ये साया।
क्यों वो हाथ कभी काँपते नही है,
दर्द की परिभाषा को क्यों भांपते नही है,
क्यों होती है इंसानियत शर्मसार हर बार,
क्यों हम नींद से जागते नही है।
सहानुभति भी वो नाटक भर दिखाता है,
आंखों में अश्क़ प्याज से लाता है,
क्यो होता है फिर बलात्कार बार -2,
क्यों कोई उसके तन को ढांकता नही है।
ये कोई एक रोज की बात नही,
दर्द से न गुजरे फिर ऐसी कोई रात नही,
ऐसी अमावस की रात कोई लाता क्यों है,
करता कोई जीवन मे रोशनी क्यों नही।
लेखक:-लव पांचाल
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