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Deep Thought Poetry In Hindi | Poetry On Time |
कुछ कमी सी खलती है || Poetry On Time || Deep Thought Poetry In Hindi
सब कुछ है पास में
धन दौलत शान ओर शोकत
नोकर चाकर
पर फिर भी कुछ कमी सी खलती है
माँ भी है बाप भी है
भाई भी है बहन भी है
है रिश्तो की भी पूरी शौग़ात
पर फिर भी कुछ कमी सी खलती है
बीवी भी है बच्चे भी है
सांस ससुर सब अच्छे है
मिल जाता है पलभर में
जो भी ख्वाइश करता हूँ
जाने फिर किस चीज की कमी खलती है
रिस्ते है पर रिश्तो के लिए समय नही हैं
विषय वस्तु है पर लुफ्त उठाने का समय नही है
पकवान है पर खाने का समय नही है
कहना है बहोत कुछ पर कहने का समय नही है
शायद यही है शायद यही है
आज तक जिसकी कमी खल रही है
लेखक:-लव पांचाल
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